मैं एक टूटता हुआ भवन हॅू
एक वक्त था जब
मेरी भी पहचान थी
गुजरने वाला हर पथिक
...
गौर से निहारता था मुझे
तब मुझमें भी कई रंग थे
आज मैं बदरंग हॅू
मैं एक टूटता हुआ भवन हॅू।
कल तक मेरा आस्तित्व
मुझे चुनौती देता था
आज मैं स्वयंआस्तित्वहीन हॅू
मैं एक टूटता हुआ भवन हॅू।
कल मेरी जगह होगी,कोई
अट्टालिका नई
नएपन से आकंठ सराबोर
आकर्षण से अभिभूत
पर अफसोस,उसमें नहीं होंगी
वर्षों पुरानी वो यादें
वो यादें,जो दफन हो जायेंगी
मेरे ही साथ,मेरे ही सीने में।
एक वक्त था जब
मेरी भी पहचान थी
गुजरने वाला हर पथिक
...
गौर से निहारता था मुझे
तब मुझमें भी कई रंग थे
आज मैं बदरंग हॅू
मैं एक टूटता हुआ भवन हॅू।
कल तक मेरा आस्तित्व
मुझे चुनौती देता था
आज मैं स्वयंआस्तित्वहीन हॅू
मैं एक टूटता हुआ भवन हॅू।
कल मेरी जगह होगी,कोई
अट्टालिका नई
नएपन से आकंठ सराबोर
आकर्षण से अभिभूत
पर अफसोस,उसमें नहीं होंगी
वर्षों पुरानी वो यादें
वो यादें,जो दफन हो जायेंगी
मेरे ही साथ,मेरे ही सीने में।
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