Sunday 4 November 2012

- पैंतरे-

सुना है मैंने कि
जरूरी हैं पैंतरे
जीने के लिए...
कई बार देखा भी 
इन पैंतरों की हकीकत...
इतिहास गवाह है
मूक दर्शक है
स्वयं शिकार भी है
इन्हीं पैंतरों का....

रिश्तों से लेकर राष्ट्रों तक
गॉधी से लेकर अन्ना तक
गॉवों से लेकर शहरों तक
जब भी मूक समझौतों को
मौन स्वीकृति मिली...
सदैव जीतते रहे
शब्दों के बुनकर
इन्हीं पैंतरों से....
काश कि ये पैंतरे न होते।
(सौरभ)

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