ढलता रहा,चलता रहा
ये तो बस
सोच का एक सिरा था
जो हर एक पल बदलता रहा ।
ठीक,उन रेत के
बडे-बडे टीलों की तरह
जो हवा में पहाडों जैसा,
...
ये तो बस
सोच का एक सिरा था
जो हर एक पल बदलता रहा ।
ठीक,उन रेत के
बडे-बडे टीलों की तरह
जो हवा में पहाडों जैसा,
...
आकार लेते और बिगडते।
ठीक,पानी के बुदबुदों को
पकडने की कोशिश जैसे
जो एक पल को हथेलियों में समाते,
तो दूसरे ही पल बिखर जाते।
अकर्म्णयता,नाउम्मीदी और थकान में भी
क्यों सीने में कोई अहसास नहीं
क्या वक्त की आवाज मेरे साथ नहीं।
या फिर, सोच के सिरे ही,
इतने कडे हैं...............
सौरभ
ठीक,पानी के बुदबुदों को
पकडने की कोशिश जैसे
जो एक पल को हथेलियों में समाते,
तो दूसरे ही पल बिखर जाते।
अकर्म्णयता,नाउम्मीदी और थकान में भी
क्यों सीने में कोई अहसास नहीं
क्या वक्त की आवाज मेरे साथ नहीं।
या फिर, सोच के सिरे ही,
इतने कडे हैं...............
सौरभ
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