Tuesday 14 August 2012

गीता के निष्काम कर्म योग से प्रेरित मेरी एक कविता.....

मैं तो केवल एक दीप हॅू
एक ऐसा दीप
जो सदियों से निरंतर
जलता है और बझता है
पर सुना है मैंने कि
लोग मुझे सूरज कहते हैं।

कुछ लोगों ने मुझे
...
ईश्वर की उपमा दी
कुछ लोगों ने
सृष्टि का निर्मायक तत्व कहा
पर मुझे पता है मेरा सच
मैं इनमें से कुछ भी नहीं
मैं तो केवल एक दीप हॅू।

लेकिन हॅा,ये भी सच है
कि युगों-युगों से मैं
अपने कर्म पथ पर अडिग हॅू
मेरा कर्म ही मेरी नियति है
मेरी पहचान मेरे लिए
केवल एक तुच्छ दीप की है
पर सुना है मैंने कि
लोग मुझे सूरज कहते हैं।

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