Tuesday 26 April 2016

कुछ बातें मेरी भी


सरकार द्वारा किए गए कार्यों की सकारात्मक आलोचना करना हर नागरिक का अधिकार है परंतु सभी प्रकार के सुधारों की उम्मीद सरकार से ही रखना एक निहायत ही घटिया मानसिकता है । मैंने पिछले कुछ महीनों में प्रसंगवश समाज के दोहरे चरित्र को बखूबी समझा । कुछ बातें हम पुस्तकों से सीखते हैं और जानते हैं और हमारा यह ज्ञान हमारे ''सोचे गए यथार्थ '' को ही बल प्रदान करता है । अगर आप ''भोगे हुए यथार्थ '' से परिचित होना चाहते हैं तो आपको इन किताबों कि तिलस्मी दुनिया से बाहर निकलकर समाज के इन दोमुहें सर्प रूपी ठेकेदारों से रूबरू होना होगा जो कमरे में बैठकर सिर्फ सरकारों कि आलोचना करना भर जानते हैं । मैं खुद अभी तक शायद किताबों कि तिलस्मी दुनिया से बाहर नहीं हूँ लेकिन इस तिलस्म को तोड़ने का हौसला जरूर रखता हूँ । हम सभी युवाओं को आगे बढ़कर हमारी प्राथमिकता तय करनी होगी । क्या हम सिर्फ सरकार कि आलोचना ही करेंगे या कुछ और भी ? क्या हम हमारी जिम्मेदारियों को पहचान रहे हैं ? आजादी की लड़ाई के दौरान गांधीजी ने संरचनात्मक कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की थी जिसमे हिन्दू - मुस्लिम एकता को प्रोत्साहित करना , छुआछूत तथा जातिगत भेदभाव का उन्मूलन करना , साफ -सफाई को बल प्रदान करना आदि शामिल थे । आज जरूरत है पुनः इस संकल्पना को इसके वास्तविक स्वरूप में समझने की ।
आप खुद ही सोचिए - हमारे पीएम ने क्लीन इंडिया मिशन शुरू किया पर क्या इसे पूरा करना हमारे सहयोग के बिना संभव है ? क्या जातिगत भेदभाव को दूर करने की ज़िम्मेदारी देश में सिर्फ नरेंद्र मोदी के कंधों पर ही है ?क्या हिन्दू -मुस्लिम के बीच प्रेम और सौहार्द बढ़ाने की ज़िम्मेदारी भी सिर्फ इस पूरे देश में सिर्फ एक ही व्यक्ति के कंधों पर है ? जो लोग एसी कमरों में बैठकर सरकार को जातिवाद के मुद्दे पर घेरते हैं वो खुद ही अपने घरों में दलितों को किरायेदार के रूप में नही रखते । अगर आपको मेरी बात पर यकीन न हो तो कभी खुद को दलित बताकर किराए का मकान लेने की कोशिश करके देख लें । आज हर वो आदमी जो अपने आप भोंपू बजाकर देशभक्त कहता है मुझे उसकी देशभक्ति पर संदेह है ? यह जानते हुए भी की की किसी की देशभक्ति पर संदेह करने का मुझे कोई अधिकार नही ;मैं यह गलती बार -बार करूंगा , और यह गलती तब तक करूंगा जब तक यह सुनिश्चित न हो जाए की हर वह ब्राह्मण जो अपना घर किराए पर देता ह,उसके घर के बाहर एक तख्ती लगी हो जिसपर लिखा हो -''यहाँ मुस्लिम और दलित भाइयों का भी किराए के घर के लिए स्वागत है ।''जब तक यह सुनिश्चित नही होता हमें मोदी या किसी और की आलोचना का अधिकार नहीं । जब तक हम खुद को नही बदलते हमें किसी और बदलाव की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए । हमें अपने रथ में घोड़ों को अपनी गाड़ी से आगे लगाना होगा । हमें यह बात समझनी होगी की घोड़ों को रथ में गाड़ी से पीछे जोड़कर आगे बढ्ने का स्वप्न देखना बेवकूफी है ।
-सौरभ

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