Tuesday 26 April 2016

विषय : क्या ''वंदे मातरम ''का विरोध तार्किक है ?

कुछ बातें मेरी भी -

विवाद के पहलुओं के चर्चा से पूर्व ''वंदे मातरम '' का संक्षिप्त परिचय समझते हैं -

वंदे मातरम् भारत का राष्ट्रीय गीत है जिसकी रचना बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा की गई थी। इन्होंने 7 नवम्बर, 1876 ई. में बंगाल के कांतल पाडा नामक गाँव में इस गीत की रचना की थी। वंदे मातरम् गीत के प्रथम दो पद संस्कृत में तथा शेष पद बांग्ला भाषा में थे। राष्ट्रकवि रवींद्रनाथ टैगोर ने इस गीत को स्वरबद्ध किया और पहली बार 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में यह गीत गाया गया। अरबिंदो घोष ने इस गीत का अंग्रेज़ी में और आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने इसका उर्दू में अनुवाद किया। 'वंदे मातरम्' का स्‍थान राष्ट्रीय गान 'जन गण मन' के बराबर है। यह गीत स्‍वतंत्रता की लड़ाई में लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था।
वंदे मातरम् गीत का प्रथम पद इस प्रकार है-
 वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
 सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्'
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥
वर्तमान समय में समाज के कुछ लोगों द्वारा ''वंदे मातरम '' का पुरजोर विरोध किया जा रहा है । विरोधियों का तर्क है कि इस गीत की पंक्तियों में मूर्तिपूजा का भाव निहित है जो इस्लाम धर्म के सारभूत सिद्धांतों से संगत नहीं है तथा इसे गाने से धार्मिक भावनाएँ आहत होती हैं । मेरे लेखन का उद्देश्य किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करना नहीं बल्कि कुछेक साधारण तथ्यों और विश्लेषणों से भ्रम को उस आवरण को दूर करना है जो हमें सत्यता और तार्किकता से विलग करता है । इस विरोध को देखर ऐसा जरूर लगता है कि कुछ ऐसे मुसलमान हैं जो आज भी भारत को अपनी मातृभूमि नहीं मानते हैं । दोष इन मुसलमानों का नहीं है जो विरोध करते हैं बल्कि असली दोष उन क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों से प्रेरित उन राजनेताओं का है जो अल्पसंख्यक समुदाय से राजनीतिक लाभ की प्राप्ति के लिए लोगों की भावनाओं को भड़काते हैं ।
वास्तविकता बिलकुल उलट है । ''वंदे मातरम '' किसी भी दृष्टि से इस्लाम विरोधी नहीं है । कुछ प्रश्न जो विचारणीय हैं ?-
1- जिस देश में हमने जन्म लिया ,जिस देश की मिट्टी में पलकर बड़े हुए ; क्या उसके प्रति आभार प्रकट करना इस्लाम के बुनियादी सिद्धांतों से अलग है ?
2-रूस तथा चीन जैसे देशों में भी बड़ी संख्या में मुसलमान हैं । इन देशों में किसी भी संवैधानिक पद पर शपथ लेते समय अनिवार्य रूप से मातृभूमि तथा पितृभूमि जैसे शब्दों का सम्बोधन करना होता है ।
(ए)-पूर्व सोवियत संघ के 1977 का अनुच्छेद 62-''रूस के हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह समाजवादी मातृभूमि की रक्षा करे । मातृभूमि के प्रति द्रोह से अधिक गंभीर अन्य कोई अपराध नही है ।
(बी )-चीनी गणतन्त्र के 1922 के संविधान का अनुच्छेद 55-
''प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह मातृभूमि की रक्षा करे और होने वाले आक्रमण का प्रतीकार करे । ''
भारतवर्ष में तो ''वंदे मातरम '' को लेकर कोई बाध्यकारी प्रावधान नही है फिर भी बार -बार इस पावन गीत का विरोध करना क्या राष्ट्र की भावनाओं को आहत करना नहीं है ?
3-तुर्की जो की स्वयं मुस्लिम बहुल देश है ; वहाँ के एक दल का नाम ''मातृभूमि दल ''रहा है ।
4-स्वयं बांग्लादेश रेडियो के कार्यक्रम राष्ट्रीय गीतों से प्रारम्भ होते हैं जिनमे एक गीत के शब्द हैं -''ओ माँ बांग्लादेश .......''
क्या अब भी कोई संदेह रह जाता है कि ''वंदे मातरम '' का विरोध भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राज्य पर इसकी अस्मिता पर प्रश्न-चिन्ह उठाने के अतिरिक्त अन्य कुछ नही ?
''वंदे मातरम '' गीत तो हमारे स्वतन्त्रता आंदोलन की पूंजी है । स्वदेशी आंदोलन के दौरान जब आजादी के दीवाने सड़कों पर ब्रिटिश राज का विरोध करने निकलते थे तो एक ही ध्वनि गुंजायमान होती थी -''वंदे मातरम.....''इस गीत का भारत के स्वतंत्र संघर्ष में अप्रतिम योगदान रहा है । आजादी के मतवाले इस गीत की धुन पर अपने प्राणों की परवाह किए बगैर जलती लौ में कूद पड़ते थे । वो दीवाने सिर्फ हिन्दू नहीं थे । इस लड़ाई में हिंदुओं और मुसलमानों ने साथ -साथ शिरकत की थी । क्या आज इस गीत को धार्मिक मुद्दा बनाकर हम उन शहीदों की शहादत का मज़ाक नहीं बना रहे । आज के दिनों में जो लोग इसका विरोध प्रकट कर रहे हैं वो हिंदुस्तान के आस्तित्व को ही जाने -अंजाने में चुनौती दे रहे हैं । यह गीत हमारी स्वतन्त्रता का प्रतीक है , सांप्रदायिकता का नहीं । आज मुस्लिम लीग नहीं है लेकिन जो दल इस गीत का कृतिम विरोध कर राजनीतिक लाभ पाना चाहते हैं वो मुस्लिम लीग की शून्यता को ही भर रहे हैं । वो ये समझते हैं की जो काम वो मुस्लिम लीग के दिनों में कर सकते थे वो आज भी कर सकते हैं ।
हम सबको एक साथ मिलकर इस विरोध को सिरे से खारिज करना चाहिए और इस गीत को गर्व और आत्मसम्मान की भावना से अभिभूत होना चाहिए ।
गद्य रूप में श्री अरबिन्द घोष द्वारा किए गए अंग्रेज़ी अनुवाद का हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है-
मैं आपके सामने नतमस्‍तक होता हूँ। ओ माता,
पानी से सींची, फलों से भरी,
दक्षिण की वायु के साथ शांत ,
कटाई की फ़सलों के साथ गहरा,
माता!
उसकी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं,
उसकी ज़मीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुंदर ढकी हुई है,
हंसी की मिठास,
वाणी की मिठास,
माता, वरदान देने वाली, आनंद देने वाली।
आप स्वयं देखिये ,समझिए और निर्णय करिए -क्या यह विरोध तर्कसंगत है?
-------सौरभ

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