Tuesday 26 April 2016

'' क्या विश्वविद्यालय राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के अड्डे बनते जा रहे हैं ?''

------कुछ बातें मेरी भी ------------
आज यह मुद्दा गंभीर विमर्श का है कि-
'' क्या विश्वविद्यालय राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के अड्डे बनते जा रहे हैं ?''
मेरे विचार एकांगी हो सकते हैं ,अधूरे हो सकते हैं ,किसी विशेष मानसिकता से प्रेरित भी हो सकते हैं ;ऐसा डर मन में होने के बावजूद भी इस प्रश्न का उत्तर टटोलने की कोशिश करना मैं अपना दायित्व समझता हूँ । यह घोर निंदनीय है कि जेएनयू में देशविरोधी नारे लगे । एक प्रश्न यह भी है कि विश्वविद्यालयों में भ्रम ,अनिश्चितता तथा असुरक्षा के जो हालात हैं ;कहीं ये कृत्रिम तो नहीं ? बहरहाल समस्या स्वयं हमारी सोच से जुड़ी है । हम आनन -फानन में किसी भी विषय का सामान्यीकरण करने में पंडित तोताराम बन चुके हैं । नारे कुछ छात्रों ने लगाए थे जिनकी पहचान भी दीर्घ समय तक संधिग्ध ही है । हमे विमर्श का मुद्दा चुना - ''क्या जेएनयू को बंद कर देना चाहिए ?'' मेरे एक मित्र जो जेएनयू से जुड़े हैं ; ने बताया कि गाँव में थोड़ा माहौल गड़बड़ा गया है ।
अब लोग प्रश्नभरी निगाहों से हमारी तरफ देखते हैं ,जैसे की पूछ रहे हों ;'' का बबुआ !पढ़ाई -लिखाई होत बा कि महिषासुर के पुजाई में लागल बाड़?
मैं पूछना चाहता हूँ -जो गलती कुछ अंजान लोगों ने की उसकी सजा पूरे छात्र समुदाय को क्यूँ ? बार -बार विश्वविद्यालय पर निशाना साधकर इसे'' विष-विद्यालय '' बनाने पर क्यूँ तुले हो भाई !'' विषपुरुष'' ने'' परिधानमंत्री '' पर व्यक्तिगत हमला बोलकर राजनीतिक मोक्ष पा लिया । आपने बार -बार मुद्दे को ज़ोर -शोर से उछाल कर आपने खुद के राष्ट्रवादी होने का जीआई टैग भी पा लिया । अब जरूरत समस्या को समझने कि है ?
अचानक से लोग भी दो समूहों मे बंटे नजर आने लगे हैं । एक समूह दूसरे के लिए '' देशद्रोही ,सिकुलर '' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने से नही चूक रहा । ऐसा देशभक्ति का ज्वार अचानक क्यूँ उमड़ गया ? क्या देशभक्ति बिना शोर - शराबे और ज़ोर -आज़माइश के नहीं समझ आती ? क्या संसदीय कारवाई में विपक्ष पहले बाधा नहीं पाहुचते थे ? क्या कुछ वर्षों पूर्व विरोध -आंदोलन इस देश में नहीं होते थे? क्या इसके पहले भूतपूर्व पीएम मनमोहन सिंह जी को ''मौन -मोहन '' कहकर राजनीतिक व्यंग नही गढ़े जाते थे ? क्या केजरीवाल को ''कजरू '' कहकर आपने कभी चुटकी नहीं ली ? क्या आपके ऐसा कह देने मात्र से आपको कभी देशद्रोही कहकर अपमानित किया गया ? क्या सच में हमें राजद्रोह / राष्ट्रद्रोह की परिभाषा पता है? नहीं , हममे से अधिकांश को नहीं । हमें यह जान लेना होगा कि ACT OF SPEECH को जबतक ACT OF VIOLENCE से जोड़कर सत्य प्रमाणों के साथ स्थापित नहीं किया जाता , हमें किसी को भी देशद्रोही कहने का कोई अधिकार नहीं । ''मीडिया ट्रायल '' और ''फेकबुक ट्रायल '' अंततः हमारे समाज के लिए घातक ही सिद्ध होगा । हमें हमारे समाज में ''धैर्य की संस्कृति '' को प्रोत्साहित करने की जरूरत है । मैं यह बात बीजेपी के सभी विरोधी दलों के संदर्भ में भी कह रहा हूँ । अगर जनता ने बीजेपी को चुना है तो जानबूझकर तरह -तरह के प्रोपगंडा से सरकार को अस्थिर करने की साजिश भी किसी घोर अपराध से कम नहीं है । हमारे विश्वविद्यालया के छात्रों को भी समझना होगा कि आज के समय में उनको विपक्षी दलों द्वारा राजनीतिक मोहरों के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है । इस बात से हमें सहमत होना ही होगा कि विकास के अजेंडे को जिस तरह से बीजेपी ने प्रमुखता दी है ; इस मामले में वह पूर्व के सभी सरकारों से सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन भी कर रही है । विश्वविद्यालय के छात्र देशद्रोही नहीं है ,विश्वविद्यालय राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के अड्डे भी नहीं है । लेकिन यह सच है कि बहुत ही चतुराई से इन छत्रों को ''राजनीतिक अस्त्रों'' के रूप में प्रयोग करने कि साजिश हो रही है । हमें हमारे भाइयों को सच से परिचित करना होगा । हमें 'देशद्रोही' और 'राष्ट्रद्रोही' जैसे शब्दों के इस्तेमाल में अतीव सावधानी बरतनी होगी । हमारी यही असावधानी हमारे सामाजिक जुड़ाव को कमजोर बनाने में सक्षम है। हमारी यही असावधानी हमारी विफलता है ।
- -सौरभ

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