Saturday 15 December 2012

सडक का आदमी

 -सडक का आदमी

एक सफेद रोशनी के बिंब की तालाश मे,
सदियों से प्रतीक्षारत हूँ मैं,
हर बार परिवर्तन की पुरवाई में
एक नई उम्मीद पाली है मैंने,
...
पर आज भी नाउम्मीदी बरक्स खडी है मेरी ।

खून से सींचा है मैंने इस धरा को
लेकिन आज भी मेरी दुनिया ,
अभिजात्यता और सुविधा के बाहर की दुनिया है।
आखिर क्यूँ समाज का एक वर्ग अपनी लालसा पूर्ति के लिए
सारी संवेदनाओं को कुचलकर विक्षिप्त हो गया है।

मेरे जीवन में कहीं उपेक्षा तो कहीं अनुताप है
फिर भी इस चुनौतीपूर्ण जीवन को ,
आनन्दोत्सव की तरह जीता हूँ मैं।
जोखिम,हार-जीत और आशंका से घिरने के बावजूद भी
इस अंर्तद्वन्द के संस्कारों से
बाहर आना चाहता हूँ मैं।

आप सोच रहे होंगे,कौन हूँ मैं
मैं आम आदमी,सडक का आदमी हूँ....

(सौरभ)

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