एक लडकी की जिंदगी का एक चरम बिन्दु जब उसका जीना ही उसके जीने का भ्रम बन गया । उसके बचपन का हर्ष और कुछ बहुत सारे वर्ष कहानियों में तब्दील हो गए । समाज की अनुशासनहीनता और अकर्मण्यता ने उस लडकी के परिवार को दुखों के रेगिस्तान में ढकेल दिया । फिर भी जीवन के प्रति सकारात्मक दृषि्टकोण रखने वाली लडकी को समर्पित मेरी एक कविता--------------
-------------तेरी आवाज -----------
दुख की दरिया,दुख की कश्ती,
आखिर तू अब क्यूँ है हॅसती ।
क्या है तेरे अन्तर्मन की दृष्टि,
तूने तो देखा संस्कृति,परंपरा और रिश्तों की वृष्टि ।
पानी को जलता देखा तूने,सूरज की शीतलता,
हमारे मर्यादाओं की थी,यह एक मूक विफलता ।
...
खून से तेरे शुरू हुआ अब,एक नया आगाज है,
तेरे दर्द से उपजी हुई,ये तेरी आवाज है।
आँखो से बहती हैं नदियाँ,स्वर में जैसे अँगारे हों,
बर्बरता की परख ये देखो,जैसे सब ये दर्द हमारे हों॥
(सौरभ)
दुख की दरिया,दुख की कश्ती,
आखिर तू अब क्यूँ है हॅसती ।
क्या है तेरे अन्तर्मन की दृष्टि,
तूने तो देखा संस्कृति,परंपरा और रिश्तों की वृष्टि ।
पानी को जलता देखा तूने,सूरज की शीतलता,
हमारे मर्यादाओं की थी,यह एक मूक विफलता ।
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खून से तेरे शुरू हुआ अब,एक नया आगाज है,
तेरे दर्द से उपजी हुई,ये तेरी आवाज है।
आँखो से बहती हैं नदियाँ,स्वर में जैसे अँगारे हों,
बर्बरता की परख ये देखो,जैसे सब ये दर्द हमारे हों॥
(सौरभ)
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