Saturday 5 January 2013

स्याह चेहरे

मेरे जागने से पहले ही सारे ख्वाब ,न जाने कहाँ खो जाते हैं
मुझे तेरे अलावा बाकी सभी याद आते हैं।

मेरे गुमनाम मुहब्बत का मुकद्दर तो देखो,
चिरागों के जलते हुए भी अँधेरे नजर आते हैं।

फासले मिटाने को जब भी चला हूँ ,दम भर
क्यूँ हम नदी के दो किनारे नजर आते हैं ।

भीड में जब भी देखता हूँ कुछ स्याह चेहरे
... आखिर वो क्यूँ हमारे नजर आते हैं ।

(सौरभ)

Wednesday 2 January 2013

-------------तेरी आवाज -----------

एक लडकी की जिंदगी का एक चरम बिन्दु जब उसका जीना ही उसके जीने का भ्रम बन गया । उसके बचपन का हर्ष और कुछ बहुत सारे वर्ष कहानियों में तब्दील हो गए । समाज की अनुशासनहीनता और अकर्मण्यता ने उस लडकी के परिवार को दुखों के रेगिस्तान में ढकेल दिया । फिर भी जीवन के प्रति सकारात्मक दृषि्टकोण रखने वाली लडकी को समर्पित मेरी एक कविता--------------


-------------तेरी आवाज -----------

दुख की दरिया,दुख की कश्ती,
आखिर तू अब क्यूँ है हॅसती ।

क्या है तेरे अन्तर्मन की दृष्टि,
तूने तो देखा संस्कृति,परंपरा और रिश्तों की वृष्टि ।

पानी को जलता देखा तूने,सूरज की शीतलता,
हमारे मर्यादाओं की थी,यह एक मूक विफलता ।
...
खून से तेरे शुरू हुआ अब,एक नया आगाज है,
तेरे दर्द से उपजी हुई,ये तेरी आवाज है।

आँखो से बहती हैं नदियाँ,स्वर में जैसे अँगारे हों,
बर्बरता की परख ये देखो,जैसे सब ये दर्द हमारे हों॥
(सौरभ)